रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) से पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की जिम्मेदारी अपने हाथ में लेने का आग्रह किया। यह बात ऐसे समय में कही गई है जब कुछ ही दिनों पहले परमाणु हथियार संपन्न दोनों पड़ोसी देशों ने लगभग तीन दशकों में अपने सबसे खराब सैन्य संघर्ष को समाप्त किया है। उन्होंने कहा कि मैं पूरी दुनिया से पूछता हूं कि क्या ऐसे गैरजिम्मेदार और दुष्ट देश के हाथों में परमाणु हथियार सुरक्षित हैं। मेरा मानना है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निगरानी में ले लिया जाना चाहिए।
राजनाथ सिंह ने कहा कि आज आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत की प्रतिज्ञा कितनी कठोर है, इसका पता इसी बात से चलता है कि हमने उनके न्यूक्लियर ब्लैकमेल की भी परवाह नहीं की है। पूरी दुनिया ने देखा है कि कैसे ग़ैर ज़िम्मेदाराना तरीक़े से पाकिस्तान द्वारा भारत को अनेक बार एटमी धमकियाँ दी गईं हैं। आज श्रीनगर की धरती से मैं पूरी दुनिया के सामने यह सवाल उठाना चाहता हूँ कि क्या ऐसे ग़ैर ज़िम्मेदार और दुष्ट राष्ट्र के हाथों में परमाणु हथियार सुरक्षित हैं? मैं मानता हूँ कि पाकिस्तान के एटमी हथियारों को IAEA यानि (International Atomic Energy Agency) की निगरानी में लिया जाना चाहिए।
रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारी सीमाओं पर अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए, जिस तरह से आप सभी, बिना रुके, बिना थके, दिन-रात लगे रहते हैं, वह अपने आप में अद्भुत है, अद्वितीय है। आपकी यही बातें हम सब भारतीयों के लिए, मार्गदर्शक का कार्य करती हैं। यही कारण है, कि मैं हमेशा आपसे मिलने के लिए उत्साहित रहता हूँ, ताकि आपके अंदर की ऊर्जा से, मैं खुद भी कुछ प्रेरणा ले सकूँ। उन्होंने कहा कि आतंकियों ने पहलगाम में धर्म पूछकर, हमारे निर्दोष लोगों को मारा। उसके बाद आपने जो जवाब दिया, उसे पूरी दुनिया ने देखा। उन्होंने यह नहीं सोचा, कि आम नागरिकों ने उनका क्या बिगाड़ा है, उन्होंने ऐसा क्या किया है, कि उन्हें मार दिया जाए? पर मैं यहाँ कहना चाहूँगा, कि ‘आतंकियों ने भारतीयों को धर्म देखकर मारा, तो हमने आतंकियों को उनका कर्म देखकर मारा।’ उन्होंने धर्म देखकर बेगुनाहों की जान ली, यह पाकिस्तान का कर्म था। हमने कर्म देखकर उनका खात्मा किया, यह हमारा भारतीय धर्म था।
राजनाथ ने कहा कि एक रक्षा मंत्री के रूप में, मुझे आप सबको बेहद नजदीक से जानने का अवसर मिला है। मैं आपके साहस और पराक्रम को तो जानता ही हूँ, साथ ही साथ पहलगाम जैसी घटना के प्रति आपके गुस्से को भी मैं जानता हूँ। मुझे पता है, कि पहलगाम के बाद आपके अंदर गुस्सा था, पूरे देश के अंदर गुस्सा था। मुझे पता है, कैसा महसूस होता है, जब धमनियों में बह रहा रक्त बेकाबू होने लगे। और मुझे इस बात की ख़ुशी भी है, कि आपने अपने गुस्से को सही दिशा देते हुए, बड़ी बहादुरी और सूझ-बूझ के साथ, पहलगाम का बदला लिया।