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मोदी सरकार मनरेगा को नष्ट करने की कोशिश कर रही है: खरगे

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार मनरेगा को नष्ट करने की कोशिश कर रही है और इस योजना के कार्यान्वयन में कटौती करना संविधान के खिलाफ अपराध है। उन्होंने एक्स पर लिखा कि मोदी सरकार गरीबों की जीवन-रेखा मनरेगा को तड़पा-तड़पा कर ख़त्म करने की कवायद में जुटी है। मोदी सरकार ने अब वर्ष के पहले 6 महीनों के लिए मनरेगा खर्च की सीमा 60% तय कर दी है। मनरेगा जो संविधान के तहत काम का अधिकार का क़ानूनी अधिकार सुनिश्चित करती है, उसमें कटौती करना संविधान के ख़िलाफ़ अपराध है।

खड़गे ने सवाल करते हुए कहा कि क्या ऐसा मोदी सरकार केवल इसलिए कर रही है क्योंकि वो गरीबों की जेब से क़रीब ₹25,000 करोड़ छीनना चाहती है, जो कि हर साल, साल के अंत तक, demand ज़्यादा होने पर उसे अगले वित्तीय वर्ष में अलग से ख़र्च करने पड़ते हैं? उन्होंने दूसरा सवाल किया कि चूंकि मनरेगा एक demand-driven योजना है, इसलिए यदि आपदाओं या प्रतिकूल मौसम की स्थिति में पहली छमाही के दौरान मांग में demand की वृद्धि होती है, तो क्या होगा? क्या ऐसी सीमा लागू करने से उन गरीबों को नुकसान नहीं होगा जो अपनी आजीविका के लिए मनरेगा पर निर्भर हैं?

 

 

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि सीमा पार हो जाने पर क्या होगा? क्या राज्य demand के बावजूद रोज़गार देने से इनकार करने के लिए मजबूर होंगे, या श्रमिकों को समय पर भुगतान के बिना काम करना होगा? क्या ये सच नहीं कि एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, केवल 7% परिवारों को वादा किए गए 100 दिन का काम मिल पाया है? (लिब टेक, 21 मई तक) क़रीब 7 करोड़ पंजीकृत वर्करों को मनरेगा से AADHAAR Based Payment की शर्त लगा बाहर क्यों किया गया? उन्होंने आगे पूछा कि 10 सालों में मनरेगा बजट का पूरे बजट के हिस्से में सब से कम आवंटन क्यों किया गया? ग़रीब विरोधी मोदी सरकार, मनरेगा मज़दूरों पर जुल्म ढाने पर क्यों उतारू है?

खड़गे ने कहा कि मनरेगा पर ख़र्च रोकने की कुल्हाड़ी, हर ग़रीब के जीवन पर मोदी सरकार द्वारा किया गया गहरा आघात है ! कांग्रेस पार्टी इसका घोर विरोध करेगी। हम अपनी दो माँगों पर क़ायम हैं — पहली, मनरेगा श्रमिकों के लिए रोज़ाना ₹400 की न्यूनतम मजदूरी तय की जाए। दूसरी, साल में कम से कम 150 दिन का काम मिले।