Wednesday , July 2 2025
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बसपा सुप्रीमो मायावती ने यूपी में सरकारी स्कूलों के विलय को अनुचित और गरीब विरोधी करार दिया

लखनऊ बसपा सुप्रीमो मायावती ने सरकारी स्कूलों के विलय का विरोध करते हुए इसे गरीब विरोधी फैसला करार दिया है। उन्होंने सरकार से इसे वापस लेने की अपील की है।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने यूपी में सरकारी स्कूलों के विलय को अनुचित और गरीब विरोधी करार दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार को इस फैसले को वापस लेना चाहिए और अगर नहीं लेती है तो बसपा की सरकार आने पर इस फैसले को निरस्त किया जाएगा।उन्होंने एक्स पर कहा कि बेसिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के युग्मन/एकीकरण की आड़ में बहुत सारे स्कूलों को बंद करने वाला जो फैसला लिया गया है, वह गरीबों के करोड़ों बच्चों को उनके घर के पास दी जाने वाली सुगम व सस्ती सरकारी शिक्षा व्यवस्था के प्रति न्याय नहीं, बल्कि पहली नजर में ही स्पष्ट तौर पर यह अनुचित, गैर-जरूरी एवं गरीब-विरोधी प्रतीत होता है।

सरकार से अपील है कि वह अपना युग्मन/एकीकरण का यह फैसला गरीब छात्र-छात्राओं के व्यापक हित में तुरन्त वापस ले। यदि सरकार अपना यह फैसला वापस नहीं लेती है तो फिर हमारी पार्टी इनके सभी माता-पिता व अभिभावकों को यह विश्वास दिलाना चाहती है कि हमारी पार्टी बसपा की सरकार बनने पर फिर इस फैसले को रद्द करके पुनः  प्रदेश में पुरानी व्यवस्था बहाल करेगी। वैसे उम्मीद है कि यूपी सरकार गरीबों व आमजन की शिक्षा के व्यापक हित के मद्देनजर अपने इस फैसले को बदलने के बारे में जरूर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी। 

रेलवे के टिकट महंगे करने पर केंद्र पर साधा निशाना

इसके पहले उन्होंने रेलवे टिकट महंगे करने और बढ़ती महंगाई पर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि देश के अधिकांश लोग महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी व कमाई घटने से परेशान हैं। ऐसे में केंद्र सरकार की ओर से रेल का किराया बढ़ाना जनहित के खिलाफ है। यह संविधान के कल्याणकारी उद्देश्य के बजाय व्यावसायिक सोच वाला फैसला ज्यादा लगता है। सरकार को इस पर तुरंत पुनर्विचार करना चाहिए।

देश की आबादी में से लगभग 95 करोड़ लोग सरकार की कम से कम किसी एक सामाजिक कल्याण योजना का लाभार्थी बनने को मजबूर हुए हैं, जिससे ऐसे लाचार व मजबूर लोगों की संख्या अब बढ़ते-बढ़ते 64.3 प्रतिशत तक पहुंच गई है। जबकि 2016 में यह संख्या करीब 22 प्रतिशत थी। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के इन आंकड़ों को भी सरकार अपनी उपलब्धि बता रही है, जो उचित नहीं है। सबको मालूम है कि सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए लोगों को कितनी परेशानी झेलनी पड़ती है।