एक्सिओम मिशन में ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की क्या भूमिका है? वे अपने साथ क्या-क्या लेकर गए हैं? आईएसएस पर पहुंचने के बाद शुभांशु की क्या जिम्मेदारी होंगी? यहां वे किस तरह के प्रयोगों (एक्सपेरिमेंट) और अभियानों में शामिल होंगे? इनसे भारत के गगनयान मिशन को किस तरह से फायदा होगा?
निजी स्पेस कंपनी एक्सिओम ने 25 जून (बुधवार) को एक्सिओम-4 मिशन से चार अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) रवाना कर दिया। इस मिशन में भारत के शुभांशु शुक्ला भी शामिल हैं, जो कि भारतीय वायुसेना में पायलट हैं और फिलहाल ग्रुप कैप्टन हैं। इस तरह 41 साल बाद भारत का कोई शख्स अंतरिक्ष यात्री बनने का गौरव प्राप्त करने वाला है।
शुभांशु शुक्ला इस मिशन में पायलट के तौर पर आईएसएस भेजे गए हैं। यानी जिस ड्रैगन कैप्सूल के जरिए एक्सिओम-4 मिशन को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) रवाना किया गया है, शुभांशु उसको गाइड करने (नैविगेशन) में अहम भूमिका निभा रहे हैं। यहां स्पेसक्राफ्ट को आईएसएस पर डॉक कराने से लेकर अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित पहुंचाने तक की जिम्मेदारी शुभांशु के ही कंधों पर ही है। इसके अलावा अगर यह कैप्सूल किसी तरह की दिक्कत में आता है तो शुभांशु के पास ही यान का कंट्रोल और आपात फैसले लेने की जिम्मेदारी है। कुल मिलाकर शुभांशु इस मिशन में सेकंड-इन-कमांड की भूमिका में हैं। पेगी व्हिट्सन के बाद वे एक्सिओम-4 का सबसे अहम केंद्र होंगे। एक्सिओम मिशन के तहत आईएसएस में कुल 14 दिन बिताएंगे।
शुभांशु आईएसएस पर छह तरह की फसलों के बीज साथ लेकर गए हैं। अपने 14 दिन के सफर के दौरान वे इन बीजों के माइक्रोग्रैविटी में विकास को लेकर अहम जानकारी इकट्ठा करेंगे। इस प्रयोग का मकसद आने वाले समय में अंतरिक्ष में खेती करने के विकल्पों को तलाशना होगा।
प्रयोग-2: काई के इस्तेमाल पर एक्सपेरिमेंट
शुभांशु अपने मिशन के लिए माइक्रोएल्गी (Microalgae) यानी काई के तीन स्ट्रेन लेकर पहुंचे हैं। वे कम गुरुत्वाकर्षण के बीच इन्हें खाने, ईंधन और लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशन के दौरान जीवन बचाने के विकल्प के तौर पर प्रयोग में लाएंगे।
एक्सिओम-4 के मिशन में शुभांशु टार्डीग्रेड्स (एक तरह का छोटा जीव, जो कि चरम स्थितियों में भी खुद को सामान्य रख सकता है) पर परीक्षण करेंगे। इसके जरिए यह जानने की कोशिश की जाएगी कि अंतरिक्ष के खतरनाक माहौल में कौन से जीवाणु सुरक्षित रह सकते हैं।
प्रयोग-4: मांसपेशियों के कमजोर होने पर
एक और प्रयोग के जरिए यह जानने की कोशिश की जाएगी कि शून्य गुरुत्वाकर्षण में इंसानों में मांस कैसे कम होता है और इससे निपटा कैसे जा सकता है। आमतौर पर लंबी अवधि के मिशन में अंतरिक्ष यात्रियों को मसल एट्रोफी यानी मांस घटने की शिकायत आती है। ऐसे में अंतरिक्षयात्रियों पर पाचन से जुड़े सप्लीमेंट्स का असर देखा जाएगा।
एक्सिओम-4 मिशन के दौरान एक स्टडी माइक्रोग्रैविटी के आंखों पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी की जाएगी। इस रिसर्च में यह पता लगाया जाएगा कि अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स की आंखों की पुतलियों का मूवमेंट किस हद तक प्रभावित होता है। साथ ही इससे किसी की तनाव और सजगता कितनी प्रभावित होती है।
प्रयोग-6: अलग-अलग फसलों की पोषण गुणवत्ता
मिशन के दौरान कुछ बीजों को अंकुरित करने का प्रयास किया जाएगा। इनके पोषक तत्वों को भी मापा जाएगा, जिससे पृथ्वी और जीरो ग्रैविटी में पैदा हुई फसलों के पोषण में अंतर को समझने का प्रयास किया जाएगा। यह प्रयोग भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों के बोझ को घटाएगा, क्योंकि अगर अंतरिक्ष में फसलें बराबर या ज्यादा मात्रा में पोषक होती हैं, तो इन्हें वहीं उगाने की कोशिश की जाएगी।
शुभांशु शुक्ला के सबसे कठिन प्रयोगों में से यह एक रहेगा। दरअसल, अंतरिक्ष में खाना, पानी और ऑक्सीजन की उपलब्धता बड़ी समस्या रही है। खासकर लंबी अवधि के अभियानों के लिए। ऐसे में वैज्ञानिक काफी समय से आईएसएस पर ही इन चीजों की व्यवस्था की कोशिशों में जुटे हैं। अब यूरिया और नाइट्रेट में सायनोबैक्टीरिया का इस्तेमाल कर वैज्ञानिक यह देखने की कोशिश में हैं कि क्या अंतरिक्ष की जीरो ग्रैविटी में खाना और ऑक्सीजन एक साथ पैदा किए जा सकते हैं। गौरतलब है कि यूरिया और नाइट्रेट दोनों ही खाना बनाने के लिए अहम हैं।
आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर जाने वाले मिशन्स के लिए नासा की स्पेस फूड सिस्टम्स लैब खाने के सैंपल तैयार करके भेजती है। इनमें सूखा-जमा हुआ खाना होता है, जो कि पैक्ड होता है। इसमें पाउडर स्वरूप में पेय पदार्थ, बिस्किट, भोजन, आदि होते हैं। इन्हें अंतरिक्ष यात्री अपनी पसंद के हिसाब से ले सकते हैं। हालांकि, खाने की इन चीजों में भारतीय व्यंजन अब तक शामिल नहीं किए गए थे।
अब भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी (इसरो) और डीआरडीओ ने कई वर्षों की रिसर्च के बाद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए स्पेस में लिए जा सकने वाला खाना तैयार करने में सफलता हासिल की है। पहले शुभांशु को अपने साथ खाने की इन सामग्रियों को ले जाने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि यह काफी मसालेदार होते हैं। हालांकि, बाद में इसकी इजाजत दे दी गई।
अब इस खाने को आईएसएस पर इस्तेमाल करने के बाद इसरो अपने गगनयान मिशन में चयनित हुए अंतरिक्ष यात्रियों के लिए भी इस्तेमाल कर सकता है। माना जा रहा है कि 2027 में रवाना होने वाले गगनयान में कई और खाने की वैराइटियों को शामिल किया जाएगा। चूंकि शुभांशु उस मिशन में भी शामिल होंगे, इसलिए एग्जियोम का मिशन भारतीय खाने और अंतरिक्ष में उसके स्वाद में परीक्षण का एक अहम मौका होगा।
बताया गया है कि शुभांशु अपनी कुछ और चीजों को एक्सिओम-4 मिशन पर ले जाने वाले हैं। हालांकि, इसकी जानकारी गुप्त रखी गई है। इस बीच में मिशन में एक सॉफ्ट टॉय (मुलायम खिलौने) को भेजा गया, जो कि जॉय नाम का एक हंस होगा। इसकी वजह यह है कि जब स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी की कक्षा से निकलकर अंतरिक्ष पहुंचेगा, तब जीरो ग्रैविटी की शुरुआत हो जाएगी। इसी का संकेत देने के लिए यह सॉफ्ट टॉय भेजा जा रहा है, जो कि गुरुत्वाकर्षण बल की गैरमौजूदगी में खुद ही उड़ने लगेगा।
इसरो का कहना है कि शुभांशु आईएसएस में रहते हुए कुछ मौकों पर भारतीय छात्रों के साथ एक इंटरेक्टिव सत्र का हिस्सा बनेंगे। वे स्पेस स्टेशन के जीवन के बारे में अपने अनुभव साझा करेंगे। इसका मकसद भारतीय छात्रों, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों का रुझान अंतरिक्ष के प्रति बढ़ाना है।