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सुप्रीम कोर्ट की 11वीं महिला जज जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने अपने कार्यकाल पूरा कर न्यायिक सेवा से विदाई ली

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक, जब जस्टिस बेला त्रिवेदी ट्रायल कोर्ट में जज बनीं, उस समय उनके पिता भी उसी अदालत में जज थे। इस खास पिता-पुत्री की जोड़ी को ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ ने 1996 में अपने संस्करण में दर्ज किया था।

सुप्रीम कोर्ट की 11वीं महिला जज जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने शुक्रवार को अपने कार्यकाल पूरा कर न्यायिक सेवा से विदाई ली। वे लगभग साढ़े तीन साल तक सुप्रीम कोर्ट की पीठ का हिस्सा रहीं। जस्टिस त्रिवेदी का न्यायिक सफर खास रहा क्योंकि उन्होंने जुलाई 1995 में गुजरात के ट्रायल कोर्ट (सिटी सिविल एंड सेशन्स कोर्ट) से अपने करियर की शुरुआत की और वहां से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने वाली दुर्लभ महिला जजों में शामिल हुईं।

सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक योगदान
जस्टिस त्रिवेदी को 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था। उस दिन रिकॉर्ड नौ जजों ने शपथ ली थी, जिनमें 3 महिलाएं थीं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कई अहम और ऐतिहासिक फैसलों में हिस्सा लिया।
  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को 10% आरक्षण देने के फैसले में वे पांच सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा थीं। नवंबर 2022 में इस फैसले को 3:2 बहुमत से मंजूरी मिली थी। इसमें एससी/एसटी/ओबीसी के गरीबों को शामिल नहीं किया गया था।
  • एससी वर्गों में उप-श्रेणीकरण को लेकर अगस्त 2024 में सात जजों की पीठ का हिस्सा रहीं। 6:1 के बहुमत से यह फैसला आया कि राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों के भीतर उप-श्रेणी बना सकती हैं। हालांकि जस्टिस त्रिवेदी ने इससे असहमति जताई और 85 पन्नों का अलग फैसला लिखा। उनके अनुसार केवल संसद को ही यह अधिकार है कि वह किसी जाति को सुप्रीम सूची में जोड़े या हटाए।
  • POCSO एक्ट में ‘स्किन-टू-स्किन’ फैसले को पलटा, नवंबर 2021 में उन्होंने उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि त्वचा से त्वचा का संपर्क न हो तो वह यौन शोषण नहीं माना जाएगा। जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि सबसे अहम बात यौन इरादा है, न कि सीधा त्वचा संपर्क।
  • वित्तीय मामलों में अहम फैसला, उन्होंने अपने एक फैसले में कहा कि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत जो रोक लगाई जाती है, वह महाराष्ट्र के डिपॉजिटर्स कानून के तहत संपत्ति जब्त करने पर लागू नहीं होती।
  • श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर योजना को हरी झंडी, 15 मई 2025 को जस्टिस त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की मथुरा में मंदिर कॉरिडोर विकास योजना को मंजूरी दी, जिससे श्रद्धालुओं को लाभ होगा।
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी के बारे में जानिए
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी का जन्म 10 जून 1960 को गुजरात के पाटन में हुआ था। उन्होंने गुजरात हाईकोर्ट में वकील के रूप में करीब 10 साल प्रैक्टिस की। 10 जुलाई 1995 को वे अहमदाबाद सिटी सिविल और सेशन्स कोर्ट की जज नियुक्त हुईं। उन्होंने गुजरात हाईकोर्ट में रजिस्ट्रार (विजिलेंस) और गुजरात सरकार में कानून सचिव के रूप में भी कार्य किया। 17 फरवरी 2011 को वे गुजरात हाईकोर्ट की जज बनीं। इसके बाद उन्हें राजस्थान हाईकोर्ट भेजा गया, जहां उन्होंने जून 2011 से फरवरी 2016 तक काम किया। इसके बाद वे गुजरात हाईकोर्ट में वापस आईं और फिर सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हुईं।

जस्टिस त्रिवेदी की सम्मानजनक विदाई
विदाई के दिन, जस्टिस त्रिवेदी परंपरा के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सेरेमोनियल बेंच में बैठीं। इस मौके पर बार और बेंच के कई सदस्यों ने उनके योगदान को याद किया।