नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने असम मानवाधिकार आयोग को असम में फर्जी पुलिस मुठभेड़ों के मामलों की जांच करने का निर्देश दिया है। निर्देश एक जनहित याचिका (पीआईएल) के बाद आया। याचिका में आरोप लगाया गया कि असम सरकार ने 2014 के पीयूसीएल मामले में सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया। दिशा-निर्देशों ने पुलिस मुठभेड़ों की जांच के लिए आधार तैयार किया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह ने इन गंभीर आरोपों की निष्पक्ष और निष्पक्ष जांच की आवश्यकता पर बल देते हुए फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘यह मामला असम में पुलिस मुठभेड़ों से संबंधित है। सरकारी अधिकारियों की ओर से शक्ति का दुरुपयोग या गैरकानूनी बल का प्रयोग अक्षम्य है। केवल केस फाइलें जमा करना अदालत के हस्तक्षेप को उचित नहीं ठहराता है, क्योंकि इससे दोषी को बचाया जा सकता है।’
‘पूरी तरह से जांच के बिना झूठा नहीं माना जा सकता’
याचिकाकर्ता ने 117 मुठभेड़ों की सूची प्रस्तुत की, लेकिन कोर्ट ने जोर दिया कि इन्हें पूरी तरह से जांच के बिना झूठा नहीं माना जा सकता। जज ने कहा, ‘वास्तविक मामलों की पहचान करना महत्वपूर्ण है। जनहित याचिकाएं प्रक्रियात्मक सुरक्षा की जगह नहीं ले सकती हैं। न्याय के लिए व्यक्तिगत दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।’
सुप्रीम कोर्ट के अहम निर्देश
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- सुप्रीम कोर्ट ने राज्य मानवाधिकार आयोग को अंग्रेजी और स्थानीय भाषाओं में समाचार पत्रों में सार्वजनिक नोटिस प्रकाशित करने का निर्देश दिया, ताकि प्रभावित परिवारों की आवाज सुनी जा सके।
- आयोग को इस प्रक्रिया में स्वतंत्र सदस्यों को शामिल करने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया।
- राज्य सरकार को किसी भी प्रशासनिक बाधा को दूर करने के साथ-साथ पूर्ण फोरेंसिक सहायता और आवश्यक संसाधन प्रदान करने का निर्देश दिया गया।
2014 के दिशानिर्देशों की स्पष्ट रूप से अनदेखी
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के 2014 के दिशानिर्देशों की स्पष्ट रूप से अनदेखी की गई है।
क्या है मामला?
जनहित याचिका में जनवरी 2023 के गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें असम पुलिस मुठभेड़ों के बारे में चिंताओं को खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय को बताया था कि मई 2021 से लेकर रिट याचिका दायर होने तक कथित तौर पर 80 से अधिक फर्जी मुठभेड़ हुईं, जिसके परिणामस्वरूप 28 मौतें हुईं। असम सरकार के हलफनामे में मई 2021 से अगस्त 2022 तक 171 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 56 मौतें और 145 घायल हुए।