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‘आतंकवाद की नींव पर टिकी रिश्तों की इमारत है काजोल, इब्राहिम अली खान और पृथ्वीराज सुकुमारन की फिल्म ‘सरजमीं’

‘अपनों के खून से बढ़कर कुछ भी नहीं…’ आतंकवाद की नींव पर टिकी रिश्तों की इमारत है काजोल, इब्राहिम अली खान और पृथ्वीराज सुकुमारन की फिल्म ‘सरजमीं’। फिल्म का सार सिर्फ इतना है कि मोहब्बत हर मर्ज की दवा है और वो हर किसी को सुधार सकती है, चाहें फिर वो आतंकवादी ही क्यों न हो। फिल्म के केंद्र में जम्मू-कश्मीर में हो रहे आतंकी हमले और उनका मुकाबला करती भारतीय सेना की कहानी है। बिना स्पॉइलर के आइए जानते हैं कैसी है इब्राहिम अली खान की दूसरी फिल्म सरजमीं।

कहानी
मूलत: ‘सरजमीं’ एक आर्मी ऑफिसर विजय मेनन (पृथ्वीराज सुकुमारन) के परिवार की कहानी है। जिसमें उसकी पत्नी मेहर (काजोल) और उसका एक 15-16 साल का बेटा हरमन (इब्राहिम अली खान) है, जो हकलाता है। हर फौजी पिता की तरह विजय भी चाहता है कि उसका बेटा हरमन फौज में शामिल हो और उससे भी बड़ा और तेज तर्रार आर्मी ऑफिसर बने। लेकिन उसका बेटा अपने पिता की उम्मीदों से बिल्कुल उलट है। वो हकलाता है और उसे अपने पर ही भरोसा नहीं है। वो स्कूल में दोस्तों से पिटकर वापस आ जाता है। यही वजह है कि विजय अपने बेटे को कमजोर मानता है और उससे ढंग से बात तक नहीं करता।
पिता के इसी रवैये के चलते हरमन को अपने पिता से काफी डर लगता है, जो डर आगे चलकर नफरत का भी रूप ले सकता है। पिता-पुत्र के रिश्ते की इस डोरी को अगर कोई मजबूती से बांधे है तो वो है महर। जो अक्सर विजय को हरमन से साथ शालीनता से पेश आने को कहती रहती है। फिर अचानक कुछ ऐसा होता, जो इस पूरे परिवार की दिशा और दशा बदलकर रख देता है। इसके बाद कहानी एक दम से आठ साल आगे बढ़ती है और फिल्म अपने प्लॉट पर आती है। हां, इस फैमिली ड्रामा के बीच आतंकियों से निपटने का सेना का ऑपरेशन भी चलता रहता है। फिल्म में कई ट्विस्ट डालने का प्रयास किया गया है।

एक्टिंंग
बात करें अभिनय की तो इब्राहिम अली खान की ये दूसरी फिल्म है। पहली फिल्म ‘नादानियां’ में लवर बॉय बने इब्राहिम इस बार बिल्कुल अलग अंदाज में नजर आए हैं। जहां वो कुछ हद तक बेहतर हुए हैं। आतंकवादी के किरदार में खुद को मजबूत दिखाने के लिए इब्राहिम ने शारीरिक मेहनत भी की है और बॉडी बनाई है, जो उन्होंने फिल्म में दिखाई भी भरपूर है। हालांकि, उनकी आवाज में भारी-भरकम डायलॉग्स में वो भारीपन नहीं आ पाता जो होना चाहिए।
कई सीन में वो काफी हद तक कश्मीरी लगे हैं। सरजमीं के किरदार के जरिए इब्राहिम ने अपनी डायवर्सिटी दिखाई है। इब्राहिम को एक अच्छी लव स्टोरी की तरफ वापस लौटना चाहिए। काजोल कुछ नई नहीं लगी हैं। वो पहले भी इस तरह के किरदार कर चुकी हैं, जिनमें वो मां रह चुकी हैं। मां की ममता वाले कई सीन में काजोल हाल ही में आई ‘मां’ फिल्म की याद दिला जाती हैं।
अधिकतर सीन में काजोल के एक्सप्रेशन वही पुराने घिसे-पिटे मालूम पड़ते हैं। बात करें पृथ्वीराज सुकुमारन की तो उन्हें जैसा काम मिला था, वैसा बखूबी किया है। वो एक सख्त आर्मी अफसर लगे हैं। उनकी डायलॉग डिलीवरी भी बढ़िया है। फिल्म में बोमन ईरानी सिर्फ कुछ सीन के लिए हैं। बाकी कलाकारों ने भी अपने किरदार के साथ इंसाफ किया है

निर्देशन
‘सरजमीं’ से बोमन ईरानी के बेटे कायोज ईरानी ने डायरेक्शन की दुनिया में कदम रखा है। पहली फिल्म में कायोज कुछ खास प्रभावित नहीं कर पाते हैं। कुछ सीन ऐसे हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि इन्हें और बेहतर ढंग से फिल्माया जा सकता था। उम्मीद है कि अपनी आगे की फिल्मों में कायोज और मेहनत के साथ वापसी करेंगे।

संगीत
फिल्म का संगीत कुछ खास नहीं है। कोई भी गाने ऐसे नहीं हैं जिन्हें आप याद रख सकें। सिर्फ बी प्राक की आवाज में ‘चरखा’ सुनने में अच्छा लगता है।

कमजोर कड़ियां
‘सरजमीं’ की सबसे कमजोर कड़ी है फिल्म की कहानी। पूरी फिल्म में कुछ भी नया नहीं है, कुछ भी ऐसा नहीं है जो पहले न देखा गया हो। कई बार काजोल को इस तरह की फिल्म में देखकर आपको ‘फना’ फिल्म की याद आ जाएगी। तो वहीं कई जगह ‘सरजमीं’ आपको ‘फिजा’ और ‘मिशन कश्मीर’ जैसी फिल्मों की भी याद दिलाएगी। फिल्म में आर्मी प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाई गईं।
दो खतरनाक आतंकवादियों को सिर्फ एक आर्मी अफसर अपनी मर्जी से छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है। वो आतंकवादी को गोली मारने की बजाय उससे फाइट कर रहा है। इतना होशियार आर्मी अफसर होने के बावजूद बगल में आतंकवादी रह रहे हैं और वो अनजान है। ये ऐसे पहलू हैं जो आपके दिमाग में सवाल पैदा करते हैं। सरल शब्दों में कहें तो ‘सरजमीं’ एक पिता-पुत्र के रिश्ते की कहानी है, जिसमें देशभक्ति का एंगल जबरन ठूंसा गया है।
करण जौहर की हर फिल्म में सबसे बड़ी चीज मोहब्बत, प्यार और इश्क ही होता है। यहां भी वही दिखता है। कहीं न कहीं कहानी और स्क्रीनप्ले इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है। ‘सरजमीं’ करण जौहर की धर्मा प्रोडक्शन के खाते में एक और कमजोर फिल्म जोड़ती है।

क्यों देखें
अगर आप इब्राहिम अली खान, काजोल या पृथ्वीराज सुकुमारन के फैन हैं, तो इसे देख सकते हैं। या फिर आपके पास सिर्फ जियो हॉटस्टार का सब्सक्रिप्शन और बाकी ओटीटी का नहीं है, तो फिर आप ‘सरजमीं’ को बर्दाश्त कर सकते हैं।